Friday, August 21, 2020

*इस्मत चुगताई *

जन्म: 21 अगस्त 1915   निधन: 24 अक्टूबर 1991

इस्मत चुगताई  इनका जन्म 21 अगस्त 1915 उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ। इस्मत चुगताई जी को ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़ें की दबी-कुचली लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है। वे अपनी 'लिहाफ' कहानी के कारण खासी मशहूर हुइ'। 1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए यह कहानी लिखना एक दुस्साहस का काम था। इस्मत को इस दुस्साहस की कीमत अश्लीलता को लेकर लगाए गए इल्जाम और मुक़दमे के रूप में चुकानी पड़ी।
उन्होंने आज से करीब 70 साल पहले पुरुषप्रधान समाज में स्त्रियों के मुद्दों को स्त्रियों के नजरिए से कहीं चुटीले और कहीं संजीदा ढंग से पेश करने का जोखिम उठाया। उनके अफसानों में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है। साहित्य तथा समाज में चल रहे स्त्री विमर्श को उन्होंने आज से 70 साल पहले ही प्रमुखता दी थी। इससे पता चलता है कि उनकी सोच अपने समय से कितनी आगे थी। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री चरित्रों को बेहद संजीदगी से उभारा और इसी कारण उनके पात्र जिंदगी के बेहद करीब नजर आते हैं।

स्त्रीयों के सवालों के साथ ही उन्होंने समाज की कुरीतियों, व्यवस्थाओं और अन्य पात्रों को भी बखूबी पेश किया। उन्होंने ठेठ मुहावरेदार गंगा जमुनी भाषा का इस्तेमाल किया जिसे हिंदी उर्दू की सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता। उनका भाषा प्रवाह अद्भुत है और इसने उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने स्त्रियों को उनकी अपनी जुबान के साथ अदब में पेश किया।

उन्होंने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी और जुगनू में अभिनय भी किया। उनकी पहली फिल्म "छेड़-छाड़" 1943 में आई थी। वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म "गर्म हवा" (1973) को कई पुरस्कार मिले।  

आज भी उनका साहित्य उसी सिरे से महत्वपूर्ण महसूस होता है। आज अगर इस्मतआपा जिंदा होती तो भारत में महिलाओंकी स्थिती देख उन्होंने उसपर अपनी कलम से आवाज उठाई होती|

#IsmatChugtai
By
Dr Ghapesh Pundalikrao dhawale
     Ghapesh, 84@gmail.com
      M. 8600044560

Tuesday, August 18, 2020

बुद्ध म्हनजे????


बुद्ध म्हनजे जगण्याची कला ,आत्मवीश्वास, समता,मैत्री, ज्ञानाचा महासागर, बुद्धांएवढा बुद्धिमान, प्रगल्भ, परिपूर्ण माणूस जगाने आजवर पाहिलेला नाही. बुद्धांच्या सामर्थ्याचा एक थेंब माझ्याकडे असता, तरी खूप झालेfc असते! एवढा थोर तत्त्वचिंतक कोणीच आजवर बघितला नाही. असा शिक्षक यापूर्वी कधी होऊन गेला नाही. काय सामर्थ्य होते पाहा. जुलमी ब्राह्मणांच्या सत्तेसमोरही हा माणूस वाकला नाही. उभा राहिला. तेवत राहिला…"

हे कोण म्हणतंय? 
साक्षात स्वामी विवेकानंद. 
 विवेकानंद १९०० मध्ये तथागत गौतम बुद्धांविषयी कॅलिफोर्नियात बोलत होते. 

भारताची जगभरातली खरी ओळख आजही 'बुद्धांचा देश' हीच आहे. भलेही त्यांचे जन्मगाव असणारे लुंबिनी आता नेपाळमध्ये असेल, पण बुद्ध आपले आणि आपण सारे बुद्धांचे. 

'बुद्धांशी तुलना होईल, असा एकही माणूस नंतर जन्मलाच नाही', असे आचार्य रजनीशांनी म्हणावे! 

बुद्ध थोर होतेच, पण बुद्धांची खरी थोरवी अशी की, आपण प्रेषित असल्याचा दावा त्यांनी कधी केला नाही.पण, बुद्ध हे या इतरांप्रमाणे प्रेषित नव्हते. स्वतःला परमेश्वर मानत नव्हते. मला सगळं जगणं समजलंय, असा त्यांचा दावा नव्हता. मीच अंतिम आहे, असे बुद्ध कधीच म्हणाले नाहीत. डॉ. आ. ह. साळुंखे म्हणतात त्याप्रमाणे, "अन्य धर्मसंस्थापकांनी लोकांना कर्मकांडाची चाकोरी दिली. त्या चाकोरीने बांधून टाकले. तथागतांचा धम्म ही विचारांची चाकोरीबद्ध मांडणी नव्हती. चाकोरी तोडून मुक्त करणारा धर्म बुद्धांनी सांगितला."

'प्रत्येकामध्ये पौर्णिमेच्या चंद्राप्रमाणे पूर्णत्व दडलेले आहेच',तो प्रभाव बुद्धांचाच तर होता. तुम्ही सगळं जग ओळखलं, पण स्वतःला ओळखलं नाही. म्हणून तर स्वतःला शरण जा, असे तथागत म्हणाले. 'बुद्धं सरणं गच्छामि' म्हणजे अन्य काही नाही. स्वतःला शरण जा, हाच त्याचा अर्थ. "कोणी काही सांगेल, म्हणून विश्वास ठेऊ नका. उद्या मीही काही सांगेल. म्हणून ते अंतिम मानू नका. पिटकात एखादी गोष्ट आली आहे, म्हणून विश्वास ठेऊ नका", असं म्हणाले बुद्ध. 

जगातला एक धर्म सांगा, एक धर्मसंस्थापक सांगा, की जो स्वतःची अशी स्वतःच चिरफाड करतो! चिकित्सेची तयारी दाखवतो! 
'भक्त' वाढत चाललेले असताना, विखार ही मातृभाषा होत असताना आणि 'व्हाट्सॲप फॉरवर्ड' हेच ज्ञान झालेलं असताना बुद्धांचा हा दृष्टिकोन आणखी समकालीन महत्त्वाचा वाटू लागतो. 
माणूस बदलतो, यावर बुद्ध विश्वास ठेवतात. कोणीही मानव बुद्ध होऊ शकतो, याची हमी देतात. मात्र, स्वतःला शरण जा, हीच पूर्वअट  काजळी एवढी चढते की, आपण आपल्यालाच अंधारकोठडीत ढकलून देतो.    
  By
डॉ. घपेश पुंडलिकराव ढवळे नागपुर
      M. 8600044560
      ghapesh84@gmail.com

अमेज़न के आदिवासियों का प्रोटेस्ट

अमेज़न के कायापो (kayapo) आदिवासी समुदाय के लोग ब्राज़ील की सड़कों पर अपनी पारंपरिक पोषक पहन कर और हाथों में तीर-धनुष लेकर प्रोटेस्ट कर रहे हैं।

प्रोटेस्ट का कारण क्या है?

पहला कारण है - अमेज़न के जंगलों में इन आदिवासियों के बीच कोरोना वायरस का अनियंत्रित रूप से फैलना और जेयर बोल्शेनारो सरकार की ओर से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलना।

दूसरा कारण है - बोल्शेनारो की नीतियों की वजह से अमेज़न के जंगलों का सफाया किया जाना, जिसकी वजह से इन आदिवासियों का अस्तित्व बहुत बड़े संकट में पड़ गया है।

ये वही बोल्शेनारो है जिसने राष्ट्रपति का चुनाव जीतते ही अमेजन के जंगलों से आदिवासियों के अधिकारों को पूर्णतः खत्म करने का प्रण लिया था और घोषणा की थी कि अमेज़न के जंगलों और उसकी भूमि का इस्तेमाल ब्राज़ील के विकास के लिए व्यावसायिक तौर पर किया जाएगा।

सर्वज्ञात है कि जेयर बोल्शेनारो शुद्ध दक्षिणपंथी व्यक्ति है। इसकी पूंजीपतियों से गहरी सांठगांठ है। इसलिए पूंजीपतियों की तिजोरियाँ भरने के लिए ये व्यक्ति आदिवासियों की बलि चढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

ब्राज़ील के आदिवासी इस समय दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तो राइट विंग सरकार की डी-फोरेस्टेशन संबंधी नीतियों की वजह से और दूसरा कोरोना महामारी की वजह से।

कोरोना से अभी तक 21 हजार से अधिक आदिवासी इन्फेक्टेड हो चुके हैं और 618 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

पूरा ब्राज़ील दुनिया में सबसे अधिक कोरोना केसेस वाले देशों में से एक है।

ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जिन देशों में जितनी अधिक तानाशाही है वहाँ कोरोना का उतना ही अधिक भयावह रूप दिखाई पड़ रहा है। 

उसमें भी आदिवासी जनता पर सबसे अधिक कहर बरस रहा है। क्योंकि ये पूँजीवादी दुमछल्ले वैसे ही आदिवासी जनता को मुनाफे के ख़ातिर खत्म करने पर तुले हुए हैं, ऊपर से आदिवासियों के सफाए के लिए कोरोना वायरस इनके लिए अवसर बनकर आया है।   

By 
डॉ. घपेश पुंडलिकराव ढवळे नागपुर
      M. 8600044560
      ghapesh 84@gmail.com