जन्म: 21 अगस्त 1915 निधन: 24 अक्टूबर 1991
इस्मत चुगताई इनका जन्म 21 अगस्त 1915 उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ। इस्मत चुगताई जी को ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़ें की दबी-कुचली लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है। वे अपनी 'लिहाफ' कहानी के कारण खासी मशहूर हुइ'। 1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए यह कहानी लिखना एक दुस्साहस का काम था। इस्मत को इस दुस्साहस की कीमत अश्लीलता को लेकर लगाए गए इल्जाम और मुक़दमे के रूप में चुकानी पड़ी।
उन्होंने आज से करीब 70 साल पहले पुरुषप्रधान समाज में स्त्रियों के मुद्दों को स्त्रियों के नजरिए से कहीं चुटीले और कहीं संजीदा ढंग से पेश करने का जोखिम उठाया। उनके अफसानों में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है। साहित्य तथा समाज में चल रहे स्त्री विमर्श को उन्होंने आज से 70 साल पहले ही प्रमुखता दी थी। इससे पता चलता है कि उनकी सोच अपने समय से कितनी आगे थी। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री चरित्रों को बेहद संजीदगी से उभारा और इसी कारण उनके पात्र जिंदगी के बेहद करीब नजर आते हैं।
स्त्रीयों के सवालों के साथ ही उन्होंने समाज की कुरीतियों, व्यवस्थाओं और अन्य पात्रों को भी बखूबी पेश किया। उन्होंने ठेठ मुहावरेदार गंगा जमुनी भाषा का इस्तेमाल किया जिसे हिंदी उर्दू की सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता। उनका भाषा प्रवाह अद्भुत है और इसने उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने स्त्रियों को उनकी अपनी जुबान के साथ अदब में पेश किया।
उन्होंने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी और जुगनू में अभिनय भी किया। उनकी पहली फिल्म "छेड़-छाड़" 1943 में आई थी। वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म "गर्म हवा" (1973) को कई पुरस्कार मिले।
आज भी उनका साहित्य उसी सिरे से महत्वपूर्ण महसूस होता है। आज अगर इस्मतआपा जिंदा होती तो भारत में महिलाओंकी स्थिती देख उन्होंने उसपर अपनी कलम से आवाज उठाई होती|
#IsmatChugtai
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Dr Ghapesh Pundalikrao dhawale
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