Thursday, May 28, 2020

बाबासाहेबांचे राजकिय वीचार


 By
 डॉ. घपेश ढवळे नागपुर 
 M.  8600044560
 ghapesh84@gmail.
     
    डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर म्हणजे ऊत्तंग  विचाराचे धनी त्यांचे प्रत्येक विचार म्हणजे एक धगधगती क्रांती- मशाल , पण जेव्हा आपण त्यांच्या राजकीय विचारावर चर्चा करतो, तेव्हा आपल्याला दिसते स्वराज्य, राष्ट्रवाद, मूलभूत हक्क, अल्पसंख्यांकांचे हितरक्षण, समाजवाद ,साम्यवाद ,बौद्ध धर्म इत्यादी संबंधी चे विचार होते. डॉ. आंबेडकरांनी भारतातील विविध राजकीय प्रश्नांसंबंधी आणि राजकीय तत्वा संबंधीचे मते आपल्या अनेक लेखातून पुस्तकातून आणि भाषणातून मांडली . हेच बाबासाहेबांचे राजकीय विचार आहेत .डॉ.आंबेडकरांचे काही राजकीय विचार हे त्यांनी घटना परिषदेच्या अधिवेशनात केलेल्या भाषणातून व्यक्त झालेले आहे . डॉ.आंबेडकरांच्या विचारांचा तत्कालीन राजकारण तसेच स्वातंत्र्याचा राजकारणात प्रभाव पडला आहे. ब्रिटिश काळात सर्वच भारतीय राजकीय नेते आणि विचारवंत प्रमाणे डॉ.  आंबेडकरांनी सुद्धा स्वराज्य संबंधी चे विचार मांडले आहेत .परंतु ते विचार इतरांपेक्षा वेगळे आहेत डॉ आंबेडकरांनी समाजवादाचा पुरस्कार केला होता .परंतु त्यांना रशिया, चीन व इतर साम्यवादी देशातील एक पक्ष पद्धतीचा साम्यवाद मान्य नव्हता. देशातील समाजवादी व्यवस्था राजकीय तसेच धार्मिक क्षेत्रात लोकशाहीचा स्वीकार करून आणि उद्योगधंद्यावर सरकारची मालकी प्रस्थापित करून समाजवादी व्यवस्था प्रस्थापित होऊ शकते .असे त्यांना वाटे डॉ. बाबासाहेबांनी लोकशाही समाजवादाचा सुद्धा  पुरस्कार केला होता. त्यामुळे त्यांना मार्क्सवाद किंवा समाजवाद विचार अपूर्ण आणि सदोष वाटत होता. डॉ. आंबेडकरांनी साम्यवाद पद्धतीवर जोरदार टीका केली होती. साम्यवाद केवळ आर्थिक भौतिक जीवनाचा महत्त्व दिले जाते, साम्यवाद धर्मविरोधी आहे ,साम्यवाद स्वातंत्र विरोधी आहेत ,साम्यवादी  राष्ट्रांनी सुद्धा समाजवादी धोरण स्वीकारून अनेक लहान लहान राष्ट्रांना आपल्या नियंत्रणाखाली ठेवले आहे. 


अल्पसंख्याकांच्या हिताचे रक्षण करणे हा डॉ. आंबेडकरांच्या जीवनाचा व कार्याचा केंद्रबिंदू होता. भारतीय समाज जीवनात अल्पसंख्यांक लोकांवर होणारे अन्याय, लक्षात घेऊन डॉ. आंबेडकरांनी सुरुवातीपासूनच अल्पसंख्यांकाच्या हिताचे रक्षण झाले पाहिजे असा विचार मांडला व त्यासाठी सतत प्रयत्न केले. 

1931 32 मध्ये झालेल्या गोलमेज परिषदेतही डॉ बाबासाहेबांनी अल्पसंख्यांकाच्या आरक्षणाची भूमिका घेतली होती .आणि मुसलमानां प्रमाणे अस्पृश्यांना स्वतंत्र मतदारसंघ असावेत अशी मागणी केली होती .भारताची राज्यघटना तयार करणाऱ्या राज्यघटना समितीत आणि राज्यघटना मसुदा समितीत सुद्धा स्पृश्य हिंदूचे बहुमत होते .हे लक्षात घेऊन त्यांनी अल्पसंख्यांकाच्या हिताचे रक्षण करण्यासाठी मागण्या  केल्या होत्या. अस्पृश्यांना अल्पसंख्यांक म्हणून घोषित करावे, अस्पृश्यांच्या रक्षणासाठी  स्वतंत्र यंत्रणा स्थापित कारवाई करावी, अस्पृश्यांना घटनात्मक तरतूद करून काही सवलती द्याव्यात आणि अशी घटनात्मक तरतूद केवळ बहुमताने बदलता येणार नाही अशी व्यवस्था करावी. 

अस्पृश्यांच्या हिताचे रक्षण  करण्याच्या उद्देशाने भारतीय राज्यघटनेतील कलम 323 ते 342 यात अस्पृश्यांसाठी आणि मागासलेल्या जाती जमातीसाठी हा सवलती मान्य केल्या . त्यांना देशात विकासवादी, समता पूरक आणि सर्वसमावेशक लोकशाही हवी होती. म्हणून त्यांनी संविधानात किंवा आपल्या लेखनात लोकशाही वर भर दिल्याचे दिसते .त्यांची लोकशाही लोकांच्या आणि देशाच्या विकासाला बाधा आणणारी नव्हती, तर विकासाला एका उत्तुंग शिखर गाठणारी होती .

संचार ग्राम विकास के लिऐ न्यु मीडिया मिश्रण..



      

      By
      डॉ. घपेश पुंडलिकराव ढवळे, नागपुर
      ghapesh84@gmail.com
      M. 8600044560
       
         ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास वृद्धि अधिकांश रूप से देश की सूचना शिक्षा और संचार सुविधाओ के विस्तार पर निर्भर करती है भारत जैसे देश मे जहा पर अधिकांश जनता ग्रामीण क्षेत्र मे रहती है। ग्रामीण भारत अपने-अाप में एक अनुठी  संस्कृती से भरा है।यहा हरे भरे खेत खलियान और शांत वातावरण का एक मिला जुला संगम देखने मिलता है।किसान के पीठ पर मोती जैसा पसीना और उन के मन में एक खुशहाल कल का सपना यही तो पहचान है भारत की ,हमारा ग्रामीण समुदाय एक ऐसा समाज हैं जहा हर कोई ऐक है।और हर किसी के अंदर कुछ करने की ललक हैं।लेकिन  ईन समाज मे पल रहे अगणित सपनो का साकार होना कोई आज कल की प्रक्रिया नही हो सकती। यह सारे सपने तभी पुरे हो सकते है। जब ग्रामीण क्षेत्र का हर कोना सूचना और संचार से जागृत हो,ओर ये काम बिना किसी क्रांती से नही हो सकता। लेकिन पिछले कुछ दशक से एक बदलाव आया है जिसमे ऐसे ही क्रांती को लाने का वादा किया है। ईस बदलाव का कारण हे न्यु मिडिया जनसंचार के युग मे आई ईस नई तकनीकी वृद्धीने सूचना पाने के ऐसे संसाधन को जन्म दिया।जीन्होने ग्रामीण समाज के विकास मे अहम भूमिका  नीभाई है। न्यु मीडिया मे इंटरनेट ओर पाॅडकास्ट जैसी तकनीक शामील है।जिसने संचार की दुनिया को एक भूतपूर्व स्वातंत्र और खुलापन प्रदान किया। भारत जैसे देश मे जहा पर अधिकांश जनता ग्रामीण क्षेत्र मे रहती है, सरकारी विभाग और गैर सरकारी संघटन (एनजीओ) दोनोहीं से विकास कार्यकर्ता सेवाए प्रदान कर रही है। विकास कार्यकर्ता इंन समूह के साथ अंत-क्रिया करने के लिए जिनकी समझ  विभिन्न स्तर की होती है।वहा संचार की विविध प्रणालीयों का प्रयोग करते है।

      श्रव्य-दृश्य साधन' का अर्थ हे उपकरण वे उपकरन और सामग्री जिंनका प्रयोग सूचना कौशल्य और ज्ञान के संचार के लीऐ किया जाता है। उन्हे शिक्षणात्मक साधन भी कहा जाता है। श्रव्य- दृश्य  और 'श्रव्य दृश्य' साधनो मे वर्गीकृत किया जाता है।श्रव्य दृश्य साधनो के  'श्रवण'का संचार   कि प्रमुख प्रक्रिया के रूप मे प्रयोग किया जाता है। दृश्‍य साधनो में 'दर्शन' का संचार की प्रमुख प्रक्रिया के रूप मे प्रयोग किया जाता है।
 अनुभव शंकू:-  शिक्षण में प्रत्येक शिक्षणात्मक  सामग्री या साधन की अपनी,अपनी विशिष्ट जागह होती है। शिक्षण प्रक्रिया स्वतःही  अनुभव से संबद्ध है । यह अनुभव अमूर्त या ठोस दोनो ही प्रकार का होता है। ईन अनुभवो मे देखने, सुनने ,महसूस करणे,सुंघने और चखने जैसी विभिन्न संवेदनाओं के साथ-साथ व्यक्ती की भावनाएँ भी सम्मिलीत  होती है। 'अनुभव शंकू' एक दृश्य हैं जीसमे दृष्ट साधनो के विभिन्न प्रकारों के बीच अंतसंबध और शिक्षण 
प्रक्रिया में उनकी वैयक्तिक स्थिती को दर्शया गया है । शंकु मे सबसे ऊपर दिखाये गये शिक्षण साधन जैसी शाब्दिक, प्रतीक, दृश्यात्मक प्रतीक, अमूर्त अनुभव प्रदान करते है।चित्र मे आप नीचे की और देखेंगे तो शंखु के आधार स्थल  पर आपको ऐसे साधन दिखाई देगे जो की  प्रत्यक्ष अधिक है। और अमूर्त कम ,इस प्रकार 'अविष्कृत अनुभव '(कामकाजी माडलो, अभिनय नमुनों का प्रयोग करते हुए )नाटकीकृत अनुभव' से एक अवस्था मे अधिक प्रत्यक्ष हे और ईसी प्रकार से चलता जाता हैं।ईसी भ्रांती आप शंकु के शिखर से नीचे देखेंगे तो बढती हुई प्रत्यक्षता की दिशा से पहुच जाएेगे। आप देखेंगे की "शाब्दिक प्रतीक" दृश्य प्रतिको से अधिक अमूर्त है।और दृश्य प्रतीके एक इंद्रिय साधनो जैसे रेकॉर्डिंग, रेडिओ ,और अचल चित्रो से अधीक अमूर्त हैं। ( डेल 1954)ऊपर 
 वर्नीत त श्रव्य दृश्य साधनों से अतिरिक्त संचार के पारंपारिक या लोक मीडिया भी है । जो ग्रामीण क्षेत्र मे लोकप्रिय भी है। ईन माध्यमो मे देशी कंठ संगीत ,शाब्दिक संगीत, और दृश्य लोककला के समीश्रन  का प्रयोग किया जाता है। 
      ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिये जिस तरह से सरकाने पहल की उसी तरह न्यू मीडियाने आकर सोशल मीडिया को भी सशक्त किया है। जिसके द्वारा ग्रामीण विकास के राजनीतिक पहलुओ को जोर मिला है। सोशल मीडिया जैसे की व्हाट्सअप, ट्विटर, फेसबुक, स्काईप , इंस्टाग्राम, टेलिग्राम, के जरी ऐ गाव का नागरिक ना केवल जानकारी पा सकता है। बल्कि अपने आपको देश से जुडा हुआ भी महसुस कर सकता है।हम ये कर सकते है कि न्यू मीडियाने ग्रामीण समाज में अभिव्यक्तिस्वातंत्र्य को आयाम दिया है।और लोकतंत्र में ये सबसे ज्यादा अहम भी होता है । की नागरिक अपनी बात को मुक्त होकर व्यक्त कर सके। 

   ग्राम विकास मे पारंपरिक माध्यम कीभूमिका

        आधुनिक वीधीयों की परिसीमा के कारण आज कल ग्रामविकास को सर्वधीत करने हेतु लोक माध्यम मे रुची बढ गई है। ग्रामीण जनता को विकासात्मक सूचनाए संप्रेषित करणे में परंपरिक माध्यम के  निम्नलिखित लाभ है। 
1 लोक माध्यमे श्रोताओकी पर्याप्त सहभागिता होती है,जीसके द्वारा संचार  की प्रभावात्मक्ता  बढ जाती है। 2.लोक  मीडिया के श्रोता। दर्शक इस माध्यम से सरलता से तादात्म्य स्थापित कर लेते है क्योकी ये उनकी संवेदनाओं को आकृष्ट करते है।
3 पारंपारिक मीडिया श्रोताओ दर्शको की रुची को आकर्षित करते है। और बनाए रखते हैं क्योंकि उनमे मनोरंजन का पुट होता हैं। 
4.लोक मिडीया अधिक  आत्मविश्वास पैदा करता है और परिवर्तन के लिए प्रेरणा प्रदान करता है क्योंकी ईसमें ग्रामीण समाज के संस्कृतीक ढांचे के अंतर्गत ही संप्रेशन किया जाता है । 
5.जिन ग्रामीण क्षेत्रों मे निरक्षरता, परिवर्तन के प्रति विरोध और जनसंचार का प्रसार अपर्याप्त है वहा लोक मिडिया अधिक प्रभावशाली सिद्ध होगा। 
6 लोक मीडिया में नवीन विषयवस्तू को शामिल करने के लिए लचीलापन   अधिक होगा और यह इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया की तुलना  मे कम महगा होगा। 
7.ग्राम विकास के लिये प्रभावी संप्रेषण हेतू लोक और आधुनिक मीडिया को एकीकृत किया जा सकता है ताकी वे एक दुसरे के पूरक बन सकें। 
  श्राव्य साधनों ,दृश्य साधनों और श्रव्य दृश्य साधनों के वर्गीकरण की जानकारी हमने देखी,पारंपरिक लोक माध्यम तथा ग्रामीण विकास मे पारंपरिक मीडिया की भूमिका के बारेमे हमने अध्ययन किया।दृश्य माध्यम की जानकारी प्राप्त करते समय हमने उनकी परिभाषा और ग्रामीण विकास मे दृश्य साधनो के प्रकार को समजा। ईसी प्रकार श्राव्य साधनों की भूमिका की विशिष्ट जानकारी भी हासिल की।श्रव्य -दृश्य साधनो के बारे मे पडते समय हमने उनकी परिभाषा, प्रकार,  और ग्रामीण विकास मे श्रव्य दृश्य साधनों की भूमिका को समझने का प्रयास किया। अध्ययन के पश्चात हमने जाना की ग्रामीण विकास संबंधित किसी भी गतिविधि के लिए उचित संचार कार्यनिती मे विविध माध्यमों का उपयुक्त मिश्रण नीहीत  होता है। 
       कुल मिलाकर यदी हम देखे तो पायेंगे की न्यू मीडिया के आनेसे ना केवल शहर बल्की गाव में भी एक बदलाव की लहर देखी जा रही है। हमारे देश की अधिकतर आबादी इन्ही गाव मे रहती है तो हम ग्राम विकास के लिये मीडिया की भूमिका को नजर अंदाज नही कर सकते।मीडिया के आधार पर हम ग्रामीण ईलाखो का विकास कर उन्हे शहरो से जोड सकते है । तभी देश के ग्रामीण क्षेत्र का विकास और मीडिया की जीम्मेदारी पुरी हो सकती हैं। 

Wednesday, May 27, 2020

नेहरु हुकुमशहा का झाले नाहीत?

       नेहरु हुकुमशहा का झाले नाहीत. 1929 मध्ये नेहरु कांग्रेस चे अध्यक्ष झाले. 1964 पर्यन्त  म्हनजे मृत्यूपर्यंत ते भारतातचे प्रधानमंत्री होते. साडेचार दशके भारतावर राज्य करनारे नेहरु या देशाचे हुकुमशहा कसे झाले नाहीत. असा प्रश्न अनेक पाश्चात्य पत्रकारांना पडतो. ईतर अनेक देशात झाले ते भारतात का झाले नाही? 

नेहरु हुकुमशहा का झाले नाहीत ' हे समजण्यासाठी नेहरुचींच काही विधाने आपन बघु. निवडणुकीच्या ऐका अनुभवानंतर नेहरु लीहततात. 'पुष्कळ वेळा निवडणुकीच्या वेळीच तुमच्यांतल्या घाणेरड्या वृत्तीला वाव मिळतो, मंग गेंड्याच्या कातडी सारख्या नीगरगट्टांना निवडून दीले जानार का ? आरडाओरडा तयार करण्यासठी लागणरा आवाज आणि भाषणाच्या नावाखाली थापा ठोकन्यांचे कसब ज्यांच्याकडे आहे. 'खोटे बोल, पन रेंटुन बोल'अशी चलाखी ज्यांना जमते ,त्यांनाच लोक निवडून देनार का ? नीवडनुक हे अश्या खोटारड्या लोकांसाठी आरक्षीत कुरन  करुन टाकायचे का? ते पुढे म्हणतात मतदारसंघाचा आकार जीथे मोठा, तीथे एखाद्या खोट्या मुद्यावरुन नीवडनुक ऐका बाजुला खेचणे सहज शक्य , होत अस. या प्रकाराची मला भीती वाटते. नेहरु हे बोलले सत्तर ऐंशी वर्षापूर्वी , पन तुम्हाला अगदी अलीकडच्या नीवडनुकीची आठवण आली असेल. 

नेहरु अत्यातिक संवेदनशील, त्यांग, लोकशाही, धर्मनिरपेक्षता, या मुल्यांबद्लची त्यांची बांधीलकी पक्की. त्यांमुळे विजय मीळवुन देखील नीवडनुकीतील अश्या अनुभवांनी ते व्थथित होते. खोटं बोल, पन रेटुन बोल, अशी चलाखी असनारे गेंड्यांच्या कातडीचे लोक निवडणुकिच्या रिंगणात उतरने हेंच भविष्यात लोकशाही समोरील आव्हान ठरनार आहे, त्यांना तेव्हाच कडुन चुकले होते. 

भारतासमोर जे देश स्वतंत्र्य झाले. त्यांपैकी अनेक देश हुकुमशहा च्या टाचेखाली  गेले. किंवा लष्करी कवायती मध्ये हरवुन गेले. देशांचा हुकुमशहा होण्याचा मोह अनेक भल्याभल्या क्रांतीकारकांना आवरता आला नाही.पन नेहरुची गोष्टच वेगळी.त्यांचे विरोधकही नेहरुंच्या लोकशाही वादी असन्या विषयी शंका घेवु शकत नाहीत. यांची ऐक छान आठवण प्रसीद्ध पत्रकार ईदर मल्होत्रा यानी लीहुन ठेवलेली आहे. 

गोष्ट 1937 च्या नोव्हेंबर महिन्यातील. कोलकत्यांतुन  प्रकाशीत होणाऱ्या 'मॉडर्न रीव्यु' ह्या ख्यातनाम मासिकात नेहरु वर ऐक निनावी लेख छापुन आला. "नेहरु सारखी माणस धोकादायक असतात आनी ती हुकुमशहा होण्याची भीती असते" असा त्या लेखांचा ऐकुन सुरू होता. जिवंतपणीच दंथ कथा होणाऱ्या अश्या वलयांकित व्यक्तीमत्वापासुन आपन सावध असायला हवे. नेहरु स्वताला मानतात लोकशाहीवादी आणि समाजवादी पण किंचित काही घडले तर ते हुकुमशहा व्हायला काहीच वेळ नाही लागणार. आपन सजग व्हायला हवेत, कारन राजे आणि सम्राट आपणाला नको आहेत! असे त्या लेखात शेवटी म्हटले होते. हा लेख अन्य कुनी नाही तर नेहरु नीच लीहला होता.असा लेख तुम्ही का लीहलात? असा प्रश्न ऐकाने नेहरुनां वीचारला. तेव्हा नेहरु म्हणाले, ' गेल्या काही दीवसात मी खुप दौरे केले. मोटारीन, विमानाने, आगगाडीने, बोटीने, होडीने, काही अंतर दुचाकीने कापले, तर काही पाई चाललो. प्रत्यक ठीकानी मी लोकांना हवा असतो. 'नीवडनुक जिंकून देनारा' अशी माझी ख्याती झालेली आहे. एकदा अशी ख्यात झाली की मानसाला हुकुमशहा होण्याचे वेध लागतात! अस बोलुन नेहरु स्तब्ध झालेत, नी पुढे म्हणाले की,आपन सर्वानी नेहमीच ओळखले पाहीजे. कोणताही ऐक चेहरा देशापेक्षा मोठा होनार नाही., यासाठी  आपन सजग असले पाहीजे. '
नेहरूचा हा सावधगिरीचा ईशारा आज वारवार आठवतोय, आणि  भविष्यातील लोकशाहीची परीस्थीतीवर मार्मिक भाष्य करतोय...

  by
  डॉ. घपेश पुंडलीकराव ढवळे
  ghapesh84@gmail.com
  M. 8600044560

Friday, May 22, 2020

पालघर मॉब लिंचिंग ओर साम्प्रदायिकता | एप्रिल 2020

माॉब लिंचींग के कारण देश में फिर से आग भडक गई हैं।कही तरह के तर्कवितर्क लगाये जा रहे है,कु़छ समय तक तो ये मॉब लिंचींग हिंदू-मुस्लीम तक पहुच गई थी, गुरुवार महाराष्ट्र के पालघर जिल्हे मे तीन साधूऔ की कथीत तोर पर,बच्चा और  अंग तस्कर बताकर मॉब लिंचींग की गई।जानकारी के मुताबिक वो तीनो मुंबई से गुजरात सुरत मे किसी के अंतिम संस्कार मे शामिल होने जा रहे थे। तभी पालघर के दुर दराज के आदिवासी बहुल दंडचींचले  गाव के कुछ लोगो ने उनकी गाडी को रोक दिया,और उन पर पथ्थरो, डंडे, राड ,से हमला शुरू कर दिया। इस घटना के जो व्हिडिओ दिखाये जा रहे है,उसमे भगवा वस्त्र में नजर आ रहे पीडित जान बचाने के लिए पोलीस के पिछे भागने की कोशिश कर रहे है। व्हिडिओ में वह पोलीस भी दीखाई दे रहे है।जब लोग उनके साथ मॉब लिंचिंग कर रहे है।ईस केस मे अब तक 101 लोगो को पोलीस ने गिरफ्तार कर दिया है।और 9 नाबालिक को अपराध के सीलसीले में हीरासत मे लीया गया है।दो पुलिस वालो को भी इसमे  सस्पेन्ड किया गया है। 

     मॉब लिंचिंग की यह भयानक घटना महाराष्ट्र के पालघर जिल्हा के गंडचींचले गाव मे हुई यह गाव आदिवासीबहुल दहानु तालुका मे पडता है, घटना वाली जगह राजधानी मुंबई से सिर्फ 140 किलोमीटर दूर है। ईस गाव मे 93% अनुसूचीत जनजाती के लोग रहते है।  

       जानकारी के मुताबिक पिछले कुछ दिनो से ईलाके मे ईस तरह की अफवाहे उड रही थी,की इस क्षेत्र मे बच्चा चोर और अंग तस्कर  सक्रिय हो गये हैं। उसके मद्देनजर स्थानीक गाव वालों ने सजगदस्ता तयार किया था। दावो के मुताबीत ईस अपवाह की वजह से यहा मारपीट की दोन घटना पहिले भी सामने आ चुकी है। पिछले बुधवार को लोकल ऍक्टिवीस्ट  विश्वास साल्वी और उनकी टीम आदिवासीबहुल सरणी गाव में लॉक  डाऊन की वजह से लोगो के लिये राशन लेकर पहुची थी तो उन पर भी  हमला कर दिया गया था। एक पोलीस टीम उने बचाने के लिए पोहोची तो उसपर भी पत्थरबाजी का दावा किया जा रहा है।ये घटना कासाथाना इलाके की है जहा साधूओ की मॉब लिंचींग की गई है।दस दीन पहले ऐक ऐसीपी अपनी टीम के साथ दादर नगर हवेली जाने की कोशिश कर रहे थे,तो ग्रामीणो ने  उनके टीम पर भी हमला किया था। ईस सारी घटनाओका  क्रम देखते हैं तो लोग ईन अफवाहे से कीतने डरे हुवे थे,जो डर उनके दीले दिमाख से नीकाल कर, सभी को ईस दहशद से मुक्ती दिलाई जा सक्ती थी जो हमने नही कीया। 

       मॉब लिंचींग को लेकर देशभर में इस तरह से सवाल उठाये जा रहे और एक सांप्रदायिक तौर पर ऊसे मीडिया की नजर नजर से देखा जा रहा है,वो ठीक नही है । पुलीस ने कारवारी  कर मामले के आरोपियों को अरेस्ट कर दिया है। गृहमंत्री ने उच्चस्तर की कमिटी गठित कर सीआयडी से जांच के आदेश दीये हैं।ताकी ईस घटना को सुलझाकर  आरोपियों को  कडी से कडी सजा की जा सके ऐसी बात ऊन्होने पत्र परीषद मे की है। 

      देश मे ये पहिली मॉब लिंचिंग नही है,आज तक देश में काफी घटना हो गई है, अखलाक, पहलुखान,इन्स्पेक्टर सुबोध सींह,तथा गुजरात के ऊना की घटना को याद कीजीऐ ईस घटनाओ की देश मे चर्चा हुई पर क्या हुवा ? वो पहली कौन सी भीड थी जीसने चौराहे गल्ली के बीच,गल्ली के मोड सडक किनारे किसी महीला को डायन बताकर मार दीया। बच्चे को रोटी चोरी के आरोप में मार दीया। वो कोनसा पहीला जवान लडका था जीसका भीड के हातो कत्ल हो गया।वो कौन सी पहली लडकी थी जो प्रेम की सजा मे शहर के सर्किल पर भीड ने मारी,वो कोनसे लोग जो उनके' धर्म' के बता कर मारे गये। वो कोन से पहले तुम्हारे  'धर्म 'के थे जो भीड ने मार दीये। ये सब लोग कोन है, ये हम पहले समझना होगा ईन की दीमा़खो मे ये ईतनी नफरत की आग कोन पैदा करता है वोभी  समझना होगा । ये सभी बातें आज तक हम समझ गये होते तो ना मॉब लिंचींग होती,ना ये नफरत की आग लोगो मे होती। ना हम ईन सभी को भीड के हाथो ईतनी बेरहमी  से मरने देते।


डॉ. घपेश पुंडलिकराव ढवळे 
ghapesh84@gmail.com
M. 8600044560