Thursday, May 28, 2020

संचार ग्राम विकास के लिऐ न्यु मीडिया मिश्रण..



      

      By
      डॉ. घपेश पुंडलिकराव ढवळे, नागपुर
      ghapesh84@gmail.com
      M. 8600044560
       
         ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास वृद्धि अधिकांश रूप से देश की सूचना शिक्षा और संचार सुविधाओ के विस्तार पर निर्भर करती है भारत जैसे देश मे जहा पर अधिकांश जनता ग्रामीण क्षेत्र मे रहती है। ग्रामीण भारत अपने-अाप में एक अनुठी  संस्कृती से भरा है।यहा हरे भरे खेत खलियान और शांत वातावरण का एक मिला जुला संगम देखने मिलता है।किसान के पीठ पर मोती जैसा पसीना और उन के मन में एक खुशहाल कल का सपना यही तो पहचान है भारत की ,हमारा ग्रामीण समुदाय एक ऐसा समाज हैं जहा हर कोई ऐक है।और हर किसी के अंदर कुछ करने की ललक हैं।लेकिन  ईन समाज मे पल रहे अगणित सपनो का साकार होना कोई आज कल की प्रक्रिया नही हो सकती। यह सारे सपने तभी पुरे हो सकते है। जब ग्रामीण क्षेत्र का हर कोना सूचना और संचार से जागृत हो,ओर ये काम बिना किसी क्रांती से नही हो सकता। लेकिन पिछले कुछ दशक से एक बदलाव आया है जिसमे ऐसे ही क्रांती को लाने का वादा किया है। ईस बदलाव का कारण हे न्यु मिडिया जनसंचार के युग मे आई ईस नई तकनीकी वृद्धीने सूचना पाने के ऐसे संसाधन को जन्म दिया।जीन्होने ग्रामीण समाज के विकास मे अहम भूमिका  नीभाई है। न्यु मीडिया मे इंटरनेट ओर पाॅडकास्ट जैसी तकनीक शामील है।जिसने संचार की दुनिया को एक भूतपूर्व स्वातंत्र और खुलापन प्रदान किया। भारत जैसे देश मे जहा पर अधिकांश जनता ग्रामीण क्षेत्र मे रहती है, सरकारी विभाग और गैर सरकारी संघटन (एनजीओ) दोनोहीं से विकास कार्यकर्ता सेवाए प्रदान कर रही है। विकास कार्यकर्ता इंन समूह के साथ अंत-क्रिया करने के लिए जिनकी समझ  विभिन्न स्तर की होती है।वहा संचार की विविध प्रणालीयों का प्रयोग करते है।

      श्रव्य-दृश्य साधन' का अर्थ हे उपकरण वे उपकरन और सामग्री जिंनका प्रयोग सूचना कौशल्य और ज्ञान के संचार के लीऐ किया जाता है। उन्हे शिक्षणात्मक साधन भी कहा जाता है। श्रव्य- दृश्य  और 'श्रव्य दृश्य' साधनो मे वर्गीकृत किया जाता है।श्रव्य दृश्य साधनो के  'श्रवण'का संचार   कि प्रमुख प्रक्रिया के रूप मे प्रयोग किया जाता है। दृश्‍य साधनो में 'दर्शन' का संचार की प्रमुख प्रक्रिया के रूप मे प्रयोग किया जाता है।
 अनुभव शंकू:-  शिक्षण में प्रत्येक शिक्षणात्मक  सामग्री या साधन की अपनी,अपनी विशिष्ट जागह होती है। शिक्षण प्रक्रिया स्वतःही  अनुभव से संबद्ध है । यह अनुभव अमूर्त या ठोस दोनो ही प्रकार का होता है। ईन अनुभवो मे देखने, सुनने ,महसूस करणे,सुंघने और चखने जैसी विभिन्न संवेदनाओं के साथ-साथ व्यक्ती की भावनाएँ भी सम्मिलीत  होती है। 'अनुभव शंकू' एक दृश्य हैं जीसमे दृष्ट साधनो के विभिन्न प्रकारों के बीच अंतसंबध और शिक्षण 
प्रक्रिया में उनकी वैयक्तिक स्थिती को दर्शया गया है । शंकु मे सबसे ऊपर दिखाये गये शिक्षण साधन जैसी शाब्दिक, प्रतीक, दृश्यात्मक प्रतीक, अमूर्त अनुभव प्रदान करते है।चित्र मे आप नीचे की और देखेंगे तो शंखु के आधार स्थल  पर आपको ऐसे साधन दिखाई देगे जो की  प्रत्यक्ष अधिक है। और अमूर्त कम ,इस प्रकार 'अविष्कृत अनुभव '(कामकाजी माडलो, अभिनय नमुनों का प्रयोग करते हुए )नाटकीकृत अनुभव' से एक अवस्था मे अधिक प्रत्यक्ष हे और ईसी प्रकार से चलता जाता हैं।ईसी भ्रांती आप शंकु के शिखर से नीचे देखेंगे तो बढती हुई प्रत्यक्षता की दिशा से पहुच जाएेगे। आप देखेंगे की "शाब्दिक प्रतीक" दृश्य प्रतिको से अधिक अमूर्त है।और दृश्य प्रतीके एक इंद्रिय साधनो जैसे रेकॉर्डिंग, रेडिओ ,और अचल चित्रो से अधीक अमूर्त हैं। ( डेल 1954)ऊपर 
 वर्नीत त श्रव्य दृश्य साधनों से अतिरिक्त संचार के पारंपारिक या लोक मीडिया भी है । जो ग्रामीण क्षेत्र मे लोकप्रिय भी है। ईन माध्यमो मे देशी कंठ संगीत ,शाब्दिक संगीत, और दृश्य लोककला के समीश्रन  का प्रयोग किया जाता है। 
      ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिये जिस तरह से सरकाने पहल की उसी तरह न्यू मीडियाने आकर सोशल मीडिया को भी सशक्त किया है। जिसके द्वारा ग्रामीण विकास के राजनीतिक पहलुओ को जोर मिला है। सोशल मीडिया जैसे की व्हाट्सअप, ट्विटर, फेसबुक, स्काईप , इंस्टाग्राम, टेलिग्राम, के जरी ऐ गाव का नागरिक ना केवल जानकारी पा सकता है। बल्कि अपने आपको देश से जुडा हुआ भी महसुस कर सकता है।हम ये कर सकते है कि न्यू मीडियाने ग्रामीण समाज में अभिव्यक्तिस्वातंत्र्य को आयाम दिया है।और लोकतंत्र में ये सबसे ज्यादा अहम भी होता है । की नागरिक अपनी बात को मुक्त होकर व्यक्त कर सके। 

   ग्राम विकास मे पारंपरिक माध्यम कीभूमिका

        आधुनिक वीधीयों की परिसीमा के कारण आज कल ग्रामविकास को सर्वधीत करने हेतु लोक माध्यम मे रुची बढ गई है। ग्रामीण जनता को विकासात्मक सूचनाए संप्रेषित करणे में परंपरिक माध्यम के  निम्नलिखित लाभ है। 
1 लोक माध्यमे श्रोताओकी पर्याप्त सहभागिता होती है,जीसके द्वारा संचार  की प्रभावात्मक्ता  बढ जाती है। 2.लोक  मीडिया के श्रोता। दर्शक इस माध्यम से सरलता से तादात्म्य स्थापित कर लेते है क्योकी ये उनकी संवेदनाओं को आकृष्ट करते है।
3 पारंपारिक मीडिया श्रोताओ दर्शको की रुची को आकर्षित करते है। और बनाए रखते हैं क्योंकि उनमे मनोरंजन का पुट होता हैं। 
4.लोक मिडीया अधिक  आत्मविश्वास पैदा करता है और परिवर्तन के लिए प्रेरणा प्रदान करता है क्योंकी ईसमें ग्रामीण समाज के संस्कृतीक ढांचे के अंतर्गत ही संप्रेशन किया जाता है । 
5.जिन ग्रामीण क्षेत्रों मे निरक्षरता, परिवर्तन के प्रति विरोध और जनसंचार का प्रसार अपर्याप्त है वहा लोक मिडिया अधिक प्रभावशाली सिद्ध होगा। 
6 लोक मीडिया में नवीन विषयवस्तू को शामिल करने के लिए लचीलापन   अधिक होगा और यह इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया की तुलना  मे कम महगा होगा। 
7.ग्राम विकास के लिये प्रभावी संप्रेषण हेतू लोक और आधुनिक मीडिया को एकीकृत किया जा सकता है ताकी वे एक दुसरे के पूरक बन सकें। 
  श्राव्य साधनों ,दृश्य साधनों और श्रव्य दृश्य साधनों के वर्गीकरण की जानकारी हमने देखी,पारंपरिक लोक माध्यम तथा ग्रामीण विकास मे पारंपरिक मीडिया की भूमिका के बारेमे हमने अध्ययन किया।दृश्य माध्यम की जानकारी प्राप्त करते समय हमने उनकी परिभाषा और ग्रामीण विकास मे दृश्य साधनो के प्रकार को समजा। ईसी प्रकार श्राव्य साधनों की भूमिका की विशिष्ट जानकारी भी हासिल की।श्रव्य -दृश्य साधनो के बारे मे पडते समय हमने उनकी परिभाषा, प्रकार,  और ग्रामीण विकास मे श्रव्य दृश्य साधनों की भूमिका को समझने का प्रयास किया। अध्ययन के पश्चात हमने जाना की ग्रामीण विकास संबंधित किसी भी गतिविधि के लिए उचित संचार कार्यनिती मे विविध माध्यमों का उपयुक्त मिश्रण नीहीत  होता है। 
       कुल मिलाकर यदी हम देखे तो पायेंगे की न्यू मीडिया के आनेसे ना केवल शहर बल्की गाव में भी एक बदलाव की लहर देखी जा रही है। हमारे देश की अधिकतर आबादी इन्ही गाव मे रहती है तो हम ग्राम विकास के लिये मीडिया की भूमिका को नजर अंदाज नही कर सकते।मीडिया के आधार पर हम ग्रामीण ईलाखो का विकास कर उन्हे शहरो से जोड सकते है । तभी देश के ग्रामीण क्षेत्र का विकास और मीडिया की जीम्मेदारी पुरी हो सकती हैं। 

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